Month: August 2020
समवसरण से मोक्ष
सामान्य-केवली समवसरण से मोक्ष जा सकते हैं, क्योंकि गणधर तीर्थंकर से पहले भी मोक्ष गये हैं और वे समवसरण कभी छोड़ते नहीं हैं । तीर्थंकर
कार्यक्रम
जीवन को सुचारु रूप से चलाने/ सफ़ल बनाने… 1. क्रम से कार्य करना । 2. ऐसे कार्य करना जिससे आगे का क्रम बन जाये ।
जातिस्मरण
पिछले जन्म की धारणा जब इस जन्म में स्मृति में गहरा जाती है, घटना/क्षेत्रादि देखकर वह धारणा उभर आती है । पुनर्जन्म की घटनाओं से
अनुजीवी / प्रतिजीवी
अनुजीवी गुण, जो सिर्फ आत्मा में हर समय पाये जायँ । प्रतिजीवी, ये घातिया कर्मों के क्षयोपशम/क्षय से होते हैं । साधारण-प्रतिजीवी गुण जैसे प्रदेशत्व
कर्मों की शक्ति
हवा झंड़े को लहरा तो देती है, पर उसको उखाड़ नहीं पाती । ऐसे ही कर्म जीव को हिला तो सकते हैं, उखाड़ नहीं सकते
स्वर्ग में कर्म-बंध
12वें स्वर्ग और ऊपर कर्म-बंध, अंत:कोड़ाकोड़ी सागर का ही होता है । ( 1कोड़ाकोड़ी से कम – कषाओं की मंदता के कारण ) आचार्य श्री
स्वावलम्बन
“अगरबत्ती” अपने सहारे जलती है, इसलिये महकती है, फूँक मारने से भी बुझती नहीं है (और ज्यादा जलने लगती है), जबकि “दिया”, घी/बाती/मिट्टी के सहारे,
प्राण
प्राण, शरीर तथा शरीर से सम्बंधित वस्तुओं को चलाने में सहायक होते हैं । (प्राण = इन्द्रियां+मन,वचन,काय बल+उच्छवास+आयु) 1. अंतरंग – चेतन प्राण 2. बाह्य
नियति
नियति यानि योग्यता । आचार्य अकलंक देव स्वामी ने लिखा है – जिस कारण से जो कार्य होना है/हो सकता है, उसी से वह कार्य
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