Month: May 2021
श्रमण
स्व-मन = जिसका मन स्वयं का हो, (जिसे अपने मन पर नियंत्रण हो) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
सकारात्मकता
पतली पगंडडी पर दो बकरियां आमने-सामने आ गयीं । एक बैठ गयी, दूसरी उसके ऊपर से निकल गयी । वरना एक या दोनों गिरतीं/गिराईं जातीं
अध्यवसाय
संकल्प विकल्पों में लगा हुआ ज्ञान कहलाता है । इससे कर्मबंध होता है । किसी ने आपको गधा कहा, बस संकल्प-विकल्प शुरु, पर जिनवाणी माँ
असंयम
संघ की आर्यिका माताओं के दीक्षा-दिवस पर आर्यिका विज्ञानमति माता जी अपनी दीक्षा के समय के भावों को व्यक्त करते हुए कहा… “उस समय मुझे
वैयावृत्ति
गृहस्थ तप नहीं कर पाता, सो उसे तपस्वियों की वैयावृत्ति के लिये कहा। सूर्य के प्रकाश से अग्नि नहीं, बीच में Magnifying glass से कार्य
कर्मफल
समय से पहले फल चखने का भाव न करें । क्योंकि अधपका फल स्वादिष्ट नहीं, स्वास्थ्यवर्धक भी नहीं तथा उसमें हिंसा (जीवराशि) ज्यादा । ताप
धर्म / मोक्षमार्ग
दो प्रकार का – 1. व्यवहार रूप – इन्द्रियों/शरीर से,उनकी सहायता से; लेकिन आत्मा के लिये । 2. निश्चय रूप – ध्यान/स्वानुभव – 7वें गुणस्थान
धर्म में संतोष
धर्म-यात्रा में संतोष नहीं करना, वरना प्रगति रुक जायेगी । पर असंतोष भी नहीं, वरना निरूत्साहित हो जाओगे/दु:खी होओगे, जिससे कर्मबंध होगा । जैसी स्थिति
उपादेय
संसार में रहो पर एक उपादेय बना लो । उपादेय = उप (करीब से) + आदेय (प्राप्त/ग्रहण करने योग्य) । शुद्ध आत्मा को उपादेय बनाओ
विशुद्धता का प्रभाव
आचार्य श्री विद्यासागर जी का बुखार उपचार करने पर भी कई दिनों से उतर नहीं रहा था । उनके गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने
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