Month: August 2021
कषाय / प्रमाद
कषाय की तीव्रता को प्रमाद कहते हैं । इसलिये कुछ आचार्यों ने आश्रव के कारणों में प्रमाद को नहीं लिया । मुनि श्री सुधासागर जी
प्रतिकार
प्रतिकार करना है तो सुख का करो, वरना सुविधाओं के आश्रित हो जाओगे । जिन्होंने किया, वे महान/ साधु/ भगवान बन गये जैसे राम/महावीर भगवान
विक्रिया
मनुष्य/ त्रियंच/ एक इन्द्रिय, विक्रिया… औदारिक काय-योग से ही करते हैं, क्योंकि उनके वैक्रियक-काय का उदय तो हो ही नहीं सकता । मुनि श्री सुधासागर
जज / वकील
जज सुनते ज्यादा हैं, बोलते कम, भेद-विज्ञान लगाकर सत्य पकड़ते हैं । फांसी का निर्णय देने के बाद कलम तोड़ देते हैं – अहिंसा का
ज्ञान / दर्शन
जो ज्ञान ज्ञेय से सीधा संबंध नहीं रखते, वे “दर्शन” पूर्वक नहीं होते, जैसे श्रुत और मन:पर्यय ज्ञान । मुनि श्री सुधासागर जी
ध्यान
क्रियात्मक प्रवृत्ति तथा भावात्मक निवृत्ति को छोड़कर जो बचा, वह ध्यान कहलाता है । चिंतन
आकिंचन्य-धर्म
आकिंचन्य-धर्म को त्याग-धर्म के बाद क्यों लिया ? त्याग-धर्म में धर्म-वृक्ष के सारे फलों का त्याग हो जाता है । वृक्ष के लिये एक भी
सम्बोधन
कार्य की सिद्धि के लिये पहले सम्बोधन करना चाहिये, जैसे… “बेटा ! ये काम कर दो” । इससे सकारात्मकता भी आयेगी । मुनि श्री प्रणम्यसागर
धर्म
वस्तु का स्वभाव “धर्म” है और “स्वभाव” हर वस्तु में होता है यानि “धर्म” हर वस्तु में होता है (इसीलिए धर्म अनादि भी है) ।
अतिरिक्त
जीवन की सारी दौड़ केवल अतिरिक्त के लिए है ! अतिरिक्त पैसा, अतिरिक्त पहचान, अतिरिक्त शौहरत, अतिरिक्त प्रतिष्ठा ! यदि यह अतिरिक्त पाने की लालसा
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