Month: October 2021
सिद्धांत / अध्यात्म ग्रंथ
सिद्धांत ग्रंथ …. में कर्म-बंध आदि Accurate, एक-एक गुणस्थान के details. अध्यात्म-ग्रंथ ….में सिर्फ उच्च और विपरीत दशाओं का वर्णन, बीच के वर्णन नहीं; शुद्ध
मुनि / आचार्य
मुनियों के 28 मूलगुण, आचार्य इनको भी पालते हैं तथा अपने अतिरिक्त गुण भी पालते हैं। जैसे मुनियों के लिये “तप” मूलगुणों में नहीं आते,
नुकसान
हर नुकसान, नुकसान करके ही नहीं जाता, फायदा भी कर जाता है जैसे सिर में चोट लगने पर खून निकलना। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
योनि
देव व नारकी की अचित्त, साधारण वनस्पति सचित्त (एक दूसरे के आश्रय से), बाकी के तीनों प्रकार की, मनुष्य में शुक्रादि अचित्त, माँ की योनि
आत्मा
शब्दों में क्या, आत्मा में अर्थ छिपा, कौन सोचता! आचार्य श्री विद्या सागर जी
मनुष्य और भगवान
मनुष्य अंदर के शत्रुओं (कर्मों) को शत्रु मानता नहीं, बाहर में शत्रु पैदा करके उनसे जूझना ही अपना धर्म मानता है। भगवान बाहर के शत्रुओं
नकल
पं. बनारसीदास जी मुनियों की नकल करके 3 दिन तक कमरे में अकेले ध्यान करते रहे (गृहस्थों के आवश्यक कर्त्तव्य छोड़कर ) इस अनुभव को
अशुचि
हमारा शरीर इतना अशुचि है कि इसके सम्पर्क में सुगंधित वस्तु भी दुर्गंधि का निमित्त (थोड़े समय में ही) बन जाती है । जबकि भगवान
कानून
संसार के कानून मनुष्य ने बनाये, धर्म के किसने ? ज़हर खाने से मरण की सज़ा, शाश्वत/ अनादि से/ प्राकृतिक नियम है। मुनि श्री प्रमाणसागर
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