Month: October 2021
वैयावृत्त्य
मन मिलाने/वात्सल्य पाने का एक ही उपाय है -वैयावृत्त्य । कितना भी कोई सुना दे, लेकिन वैयावृत्ति ना छोड़ें, इसको कहते हैं – कर्त्तव्यनिष्ठता ।
कर्म-बल
पूरे दिन घने बादल छाये रहे, भानु के अस्तित्व का भी भान नहीं हो रहा है, उस जैसा प्रतापी भी मुंह छिपाये बैठा है ।
वैयावृत्त्य
वैयावृत्त्य करने से सम्यग्दर्शन प्रौढ़ होता है, स्थितिकरण, उपगूहन तथा वात्सल्य भी पुष्ट होता है । ये तो सबसे बड़ा काम है, अन्य सारे काम
पाप बंध पर नियंत्रण
1. चुनाव लड़ना नहीं है लेकिन कौन जीते/हारे, इसे लेकर आपस में लड़ाई क्यों ? क्या इससे पापबंध नहीं होगा ! 2. जानवरों को मारना
56 कुमारियाँ
भवनवासी देवों को “कुमार” कहा जाता है, उनकी ये देवियाँ “कुमारी” । पंचकल्याणकों में बच्चियों को ही 56 कुमारियाँ बनाना परम्परा/व्यवस्था है । ये ब्रह्मचारिणी
तीर्थंकर / शलाका पुरुष
नरक से निकलकर तीर्थंकर तो बनते हैं पर शलाका पुरुष नहीं बनते हैं। कारण? तीर्थंकरों का सातिशय पुण्य होता है जो ३-४ भवों तक बना
संस्कार
मशीन से कपड़ा Defective निकल रहा है, तो सुधारोगे मशीन को या कपड़े को? सुधारना तो बिगाड़ने वाले को ही चाहिये। बच्चों को संस्कार पति/पत्नि
परिग्रह
शरीर भी परिग्रह है तभी तो (तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय-4/गाथा-21,22) देवों की समृद्धि ऊपर-ऊपर के स्वर्गों में अधिक-अधिक पर शरीरों की अवगाहना/ परिग्रह कम-कम होती जाती
वेदना की अनदेखी
कड़क सर्दी में आचार्य श्री विद्यासागर जी सहजता से सारी क्रियायें करते हैं । पूछने पर श्री धवला जी की गाथा सुनाते हैं – “वेदना
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