Month: November 2021
जड़ / चेतन
भाव-कर्म जड़ हैं पर वे चेतन को प्रभावित/आकर्षित कर लेते हैं। चेतन प्रभावित हो या ना हो/कम आकर्षित हो या ज्यादा, यह चेतन का पुरुषार्थ/स्वभाव
विज्ञान/वीतराग-विज्ञान
विज्ञान आगे बढ़ना चाहता है/बढ़ता भी है पर संस्कृति को कुचलते हुए । वीतराग-विज्ञान आगे बढ़ाता है संस्कृति को संरक्षण देते हुए । आचार्य श्री
भगवान
भगवान से भक्तों की उम्मीदें 3 प्रकार की होती हैं— 1. ऐसा भगवान जो हमारे मार्ग को शूल रहित कर दे – प्राय: भक्त ऐसा
मंगलकारी
सुंदरता के साथ जब चारित्रिक-गुण मिल जाते हैं तब वह मंगलरूप-चेहरा हो जाता है और उनके दर्शन मंगलकारी बन जाते हैं जैसे आचार्य श्री विद्यासागर
रीत-रिवाज
किसी के मरण के बाद रिश्तेदार पहले त्यौहार पर मिठाई आदि लेकर आते थे । कारण ? 6 माह के अंदर-अंदर, मनमुटावों को मिटाना, ताकि
आस्रव
आस्रव = आ + स्रव = सब ओर से झरना । मन, वचन, काय की प्रवृत्तियों से आत्मा में परिस्पंदन, इससे कर्म-वर्गणाओं के कर्म रूप
याद करना
तीन तरह के लोग होते हैं, उसी के अनुसार उनको याद किया जाता है– 1. विशेष गुण वाले । 2. अवगुण या शारिरिक कमी वाले
धर्म / धर्मात्मा
धर्म पर्याय है, धर्मात्मा वस्तु है; जिसके सहारे धर्म रहता है। मुनि श्री सुधासागर जी
भगवान / भक्त
कलयुग (पंचमकाल) में भगवान तो नहीं बन सकते, उसके लिये तो बहुत परिश्रम/ त्याग करना होता है; पर भक्त बनना आसान है, बस समर्पण करना
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