Month: March 2022
ज्ञान / दर्शन
अनध्यवसायी = व्यवसाय नहीं – दर्शनोपयोग। सत्य/असत्य, धर्म/अधर्म में भेद नहीं करता दर्शनोपयोग, बस वस्तु का एहसास कराता है। इससे हमारा काम नहीं चलेगा, इसलिये
क्रिया / भाव
अच्छी/शुभ क्रियायें यदि बुरे भाव से भी की जायें तो भी फायदेमंद रहतीं हैं क्योंकि वे अच्छी हैं सो अच्छा ही करेंगी। दु:ख पड़ने पर
निश्चय
पूर्ण को निश्चय कहते हैं, चिंतन/चिंता समाप्त, जब विश्राम मांगने लगे – शुद्धोपयोग/ यथाख्यात चारित्र होने वाला है। मुनि श्री सुधासागर जी
सिलसिला
रस्सी बुनने वाला ज़िंदगी भर रस्सी बुनता रहता है पर रस्सी का कभी अंत/छोर नहीं आता, क्योंकि वह लगातार जूट के टुकड़े लगाता जाता है।
नरकों में सम्यग्दर्शन
नरकों में सम्यग्दर्शन का एक विशेष कारण – “पीड़ा वेदन” भी है । पर पीड़ा वेदन तो मनुष्य/तिर्यंचों को भी होता है, हमारे लिये यह
शांति
शांति के ऊपर पेंटिंग प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार उस पेंटिंग को मिला जिसमें तुफान, बाढ़, बिजली कड़क रही थी, एक ठूंठ पेड़ पर बैठी चिड़िया
आत्महित
आत्महित के लिये प्रमाद यानि बहाने छोड़ने होंगे। कोई भी सांसारिक सम्बंध, आत्महित से बढ़कर नहीं होता। पकड़ दोनों हाथों के टाइट रहने से बनी
सीख
जुए में युधिष्ठिर बदनाम हुए जबकि जुए का खिलाड़ी तो शकुनी था, ऐसा क्यों ? शकुनी तो जीता था, उसको प्रसिद्ध करते तो लोग जुआ
सीमायें
सज़ा/फल मिलने की सीमायें…. अविरत सम्यग्दृष्टि 6 माह, देशव्रती की 15 दिन, महाव्रती की अंतरमुहूर्त, ताकि इतने समय में अपनी भूल को प्रायश्चित करके सुधार
कल्याणी
कल्याण की अपेक्षा, व्यक्तियों के 4 भेद होते हैं – 1. स्व-कल्याणी : जो सिर्फ अपने कल्याण की ही सोचते हैं। 2. पर-कल्याणी : जो
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