Month: February 2023

परीषह-जय

छोटे-छोटे संघ बना-बना कर सब पुराने मुनियों को आचार्य श्री विद्यासागर जी अलग-अलग जगहों पर भेज रहे थे। उन्होंने अपने पास चार नवदीक्षित मुनि ही

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रितुओं में त्याग

ऋतुओं में त्याग : अगहन – ज़ीरा पौसे – धना माघे – मिश्री फागुन – चना चैते-गुड़ बैसाखे – तेल जेठे – राई असाढ़े –

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नारकियों का कल्याण

तीर्थंकर नारकियों का कल्याण कैसे करते हैं ? 1. जातिस्मरण से भगवान के वचनों को याद/ पश्चाताप करके। 2. तीसरे नरक तक देवों द्वारा भी

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सेवा

सेवा करना चाहते हो तो ग्लानि और गाली को जीतना होगा। सेवा करने की क्षमता और गाली सहने की समता बढ़ानी होगी। मुनि श्री सौम्यसागर

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अप्रमत्त

छठे गुणस्थान के क्षयोपशम-सम्यग्दृष्टि को सातिशय-अप्रमत्त में जाने के लिये तीनों करण तीन बार करने होते हैं: 1. अनंतानुबंधी की विसंयोजना के लिये। 2. सम्यक्-प्रकृति

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ज्ञानकला

मढ़िया जी में आचार्य श्री विद्यासागर जी मंच पर विराजमान थे। तेज़ ठंडी हवा चल रही थी। आ.श्री बिलकुल सहज बैठे थे, जबकि बाकी सब

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अपूर्वकरण

अपूर्व करण में भी 4 कार्य…. 1. गुण-श्रेणी-निर्जरा = गुणित क्रम में, श्रेणी रूप (एक के बाद, एक कर्मों की लड़ियाँ), (असंख्यात गुणी) 2. गुण-संक्रमण

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प्रभुकृपा

“प्रभु का दास, कभी उदास नहीं, क्योंकि प्रभु है पास” तब सोच…. जो हो सो हो (हमको क्या) कर्मों का फल सुनिश्चित फिर संयोग वियोग

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स्वर्ग / नरक

सम्यग्दृष्टि को स्वर्ग/ नरक में फर्क नहीं लगता…. स्वर्ग में राग व हास्य नोकषाय, नरक में द्वेष व शोक नोकषाय रहती हैं। (सम्यग्दृष्टि को तो

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जीवन दर्पण

लिख रहा हूँ, यात्रा का विवरण, मैं बिना लेखनी*| मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (*अपने चारित्र के द्वारा प्रभावना करके)

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मंगल आशीष

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