Day: February 9, 2024

कर्म / नोकर्म

नोकर्म शरीरादि। “नो” = ईषत्/ अल्प/ नहीं भी/ विपरीत (कर्म से क्योंकि कर्म तो आत्मा का घात करते हैं, नोकर्म नहीं या ईषत सुख/दु:ख देते

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जिज्ञासा / समाधि

जिज्ञासा अपूर्णता से पैदा होती है या महत्वाकांक्षा बहुत हो जाने पर। जिज्ञासायें समाप्त होने पर/ संतुष्ट होना ही समाधि है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर

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मंगल आशीष

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