Month: March 2024
इंद्रियाँ
द्रव्य-इंद्रियों की रचना मुख्यतः नामकर्म (अंगोपांग + शरीर नाम) के उदय से। भाव-इंद्रियों में ज्ञानावरणी कर्म के क्षयोपशम की मुख्य भूमिका। मतिज्ञानावरण + वीर्यांतराय कर्मों
कर्म सिद्धांत
गणेश विसर्जन के समय नाव पलट गयी। भक्तों ने गणेश जी से बचाने के लिये प्रार्थना की। गणेश जी प्रकट तो हुए पर नृत्य करने
संस्कार
संस्कार दो प्रकार के… 1. पूर्व जन्मों के 2. वर्तमान के पहचानें कैसे ? यदि अपराध, सहजता/ स्वेच्छा से तो पूर्व के संस्कार। परवश/ संगति
ध्यान
ध्यान दो रूप – 1. चिंतन रूप → गृहस्थों के लिये, गुणवानों के गुणों का। 2. एकाग्रता रूप → साधुओं के लिये। निर्यापक मुनि श्री
भाव / उपयोग
पारिणामिक भाव चैतन्य भाव के हमेशा साथ (भव्यत्व या अभव्यत्व/ जीवत्व)। उपयोग अनेक तरह से परिवर्तित, भावात्मक परिणति भाव से उपयोग में परिवर्तन। उपयोग में
अवस्थायें
1. दुष्टता – द्वेष रूप/ गंदा पानी 2. इष्टता – राग रूप/ सादा पानी 3. माध्यस्थता – वीतरागता रूप/ नमी रहित चिंतन
ज्ञान की परिणति
आत्मा, इंद्रियाँ तथा मन ज्ञान के साथ चल रहे हैं। ये सब ज्ञानात्मक परिणतियाँ हैं। सबसे ज्यादा परिणति स्पर्शन इंद्रिय से ही होती है क्योंकि
चिंतन / ध्यान
चिंतन ध्यान से पहले की प्रक्रिया। चिंतन में वस्तु के इर्द गिर्द घूमते हैं, ध्यान में वस्तु के केंद्र पर केन्द्रित; दोनों एक साथ चलते
पंच-परावर्तन
चक्रवर्ती भरत के 923 पुत्र तो अनादि से निगोद में ही रहे थे, उनके पंच-परावर्तन कैसे घटित होगा ? पंच-परावर्तन अनंत को दर्शाता है। उनके
गुण
गुण जब तक गुणीजनों के पास रहता है, उसकी गुणवत्ता बनी रहती है। अवगुणी के पास होने पर वह अपनी गुणवत्ता खो देता है। (जैसे
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