Month: March 2024

पहले संसार फिर मुक्त

शास्त्रों में पहले संसारी, बाद में मुक्त जीवों का वर्णन क्यों ? 1. पहले संसार ही तो होता है फिर मुक्त होते हैं। उल्टा करने

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जीवन

डायरी के ऊपर और आखिर में जिल्द होती है। Solid/ निश्चित, इन पर कुछ लिख नहीं सकते। ऊपर बहुत कुछ पहले से लिखा रहता है

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श्रावक के मूलगुण

1. जब नवजात बच्चे को 40वें/ 45वें दिन जैन बनाने मंदिर ले जाते हैं तब मद्य, मांस, मधु तथा 5 उदंबरों = 8 का त्याग

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नाम

नाम ज्यादा चाहोगे तो बदनाम के रूप में भी मिल सकता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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निर्विचिकित्सा

निर्विचिकित्सा गुण उसी में होता है जो राग/ द्वेष, सुंदरता/ असुंदरता से ऊपर उठ गया हो। शांतिपथ प्रदर्शक

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पारिणामिक भाव

तीनों (जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व) जीव/ द्रव्य में बने रहते हैं। उस तरह का परिणमन हर समय बना रहता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/7)

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व्यवसाय / धर्म

व्यवसाय (Profession) –> जीवन चलाने को (परम्परा निभाने)* धर्म –> जीव को चलाने। *जे कम्मे सूरा, ते धम्मे सूरा। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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औदारिक

“औदारिक” उदार शब्द से बना है जैसे उपशम से औपशमिक। उदार यानी बड़ा/ स्थूल/ महान। उदार क्यों कहा ? 1. चारों पुरुषार्थों में सबसे कठिन/

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भेद-विज्ञान

संसार व परमार्थ में प्रगति के लिये हर क्षेत्र में भेद-विज्ञान ज़रूरी है.. 1.हर कार्य के लिये कालों का निश्चय करना। 2.क्षेत्रों में भेद…कहाँ क्या

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मंगल आशीष

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March 6, 2024