Day: June 29, 2024

भगवान के मस्तिष्क

भगवान के मस्तिष्क नहीं होता। दिमाग तो शरीराश्रित होता है, सिद्ध के शरीर नहीं (अरिहंत के Inactive)। मस्तिष्क नहीं सो राग द्वेष नहीं। मुनि श्री

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पर्याप्त

संसार में प्राप्त को पर्याप्त मानने को कहा, तो परमार्थ में ? दोनों में एक ही सिद्धांत… अपनी-अपनी क्षमतानुसार, आकुलता रहित, पूर्ण पुरुषार्थ। दोनों ही

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मंगल आशीष

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