Day: February 9, 2025

क्या पुण्य हेय है?

पुण्य सर्वथा हेय नहीं (श्रावकों के लिये उपादेय है), ना ही पुण्य का फल हेय है। बस! पुण्य के फल का दुरुपयोग हेय है। मुनि

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आयुबंध

आयुबंध गुणस्थान के अनुसार बंधती है। ना कि अंतिम समय के क्षणिक परिणाम के अनुसार। जैसे चौथे गुणस्थानवर्ती को देवआयु ही, चाहे अंत समय के

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अपनी पहचान

एक समृद्ध गुरुकुल खुला। जो भी पढ़ने आता उससे एक ही प्रश्न किया जाता – “तुम कौन हो?” आगे वाले बच्चे नाम बताते। योग्य नहीं

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सकारात्मक सोच

संसार की बनावट है कि अभाव और उपलब्धि साथ-साथ चलती हैं। एक खरगोश किसान के खेत से रोज गाजर खाता था। बाड़ लगाने पर रोज

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अपेक्षा / इच्छा

अपेक्षा परावलम्बी, इच्छा स्वावलम्बी। इच्छा में अपेक्षा का होना हानिकारक। श्रद्धा में अपेक्षा/ इच्छा नहीं, इसलिये लाभकारी। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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मंगल आशीष

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