सुख
सृष्टि* कितनी भी परिवर्तित हो जाए फिर भी हम पूर्ण सुखी नहीं हो सकते,
परंतु
दृष्टि थोड़ी सी भी परिवर्तित हो जाए तो हम पूर्ण सुखी हो सकते हैं ।
“जैसी दृष्टी वैसी सृष्टि”
* आसपास का वातावरण
🙏(श्रीमति शर्मा)
सृष्टि* कितनी भी परिवर्तित हो जाए फिर भी हम पूर्ण सुखी नहीं हो सकते,
परंतु
दृष्टि थोड़ी सी भी परिवर्तित हो जाए तो हम पूर्ण सुखी हो सकते हैं ।
“जैसी दृष्टी वैसी सृष्टि”
* आसपास का वातावरण
🙏(श्रीमति शर्मा)
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सुख- आल्हाद का होना होता है,यह दो प्रकार के होते हैं, इन्द्रिय सुख और अतीन्दिय सुख। इन्द्रियों विषयों में प्रीति का अनुभव होना इन्द्रिय सुख है।आत्म स्वरुप के अनुभव से उत्पन्न और रागादि विकल्पों से रहित, निराकुल रुप अतीन्द्रिय सुख होता है। अतः सच्चे सुख के लिए आत्म स्वरुप का अनुभव होना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता हैं।