स्वाध्याय परम-तप तो कहा है पर असंख्यात गुणी निर्जरा नहीं क्योंकि बाह्य क्रिया है, अंतरंग में एकांत पनप सकता है, घमंड़ हो सकता है ।
(फिर परम-तप का मतलब ?
निर्जरा तो होती है, असंख्यात गुणी न सही।
क्योंकि स्वाध्याय में मन,वचन,काय तथा सब इंद्रियां संलग्न रहती हैं)