तपादि के कष्ट
तप आदि के कष्ट वैसे ही हैं, जैसे फोड़े को ठीक करने के लिये डॉक्टर पहले फोड़े को फोड़ता है/कष्ट होता है ।
उपचार करा लेने पर भविष्य में सुकून/ आनंद,
न कराने पर कष्ट बढ़ता ही जाता है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
तप आदि के कष्ट वैसे ही हैं, जैसे फोड़े को ठीक करने के लिये डॉक्टर पहले फोड़े को फोड़ता है/कष्ट होता है ।
उपचार करा लेने पर भविष्य में सुकून/ आनंद,
न कराने पर कष्ट बढ़ता ही जाता है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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तप का मतलब इच्छाओं का निरोध करना होता है। तप के द्वारा कर्मों की निर्जरा होती है,यही मुख्य उद्देश्य है। यह भी दो प्रकार के होते हैं ब़ाह और आभ्यान्तर। उपरोक्त कथन सत्य है कि तप आदि के कष्ट वैसे ही होते है जैसे फोड़े को ठीक करने के लिए डाक्टर पहिले फोड़े को फोड़ता है तब कष्ट होता है लेकिन उपचार कराने के बाद भविष्य में सुकून और आनन्द मिलता है, ऐसा नहीं करने पर कष्ट बढ़ता है।
अतः जीवन में अपने कर्मों की निर्जरा के लिए तप अनिवार्य है लेकिन अधिकतर श्रावकों को कष्ट नहीं होता हैं।