घमंड / वैभव
आचार्य श्री विद्यानंद जी के प्रवचनों को सुनने एक संभ्रांत महिला रोजाना आती थीं पर चटाई पर न बैठकर जमीन पर बैठतीं थीं।
कारण :
जब मैं बहुत धनाड्य थी तब घमंड में गुरुओं के पास/ भगवान के मंदिर कभी नहीं जाती थी।
धीरे-धीरे वैभव समाप्त हो गया, साथ-साथ घमंड भी, गुरुओं/ मंदिर में आना शुरू कर दिया।
वैभव भी आ गया पर अब कारों के होने के बावजूद पैदल मंदिर आती हूँ।
चटाई पर न बैठकर जमीन पर बैठती हूँ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
One Response
मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी ने घमंड एवं वैभव का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जो प़ाणी घमंड पर आस्था रखता है वह कभी अपने जीवन का कल्याण नहीं कर सकता है! अतः जीवन में घमंड एवं वैभव का त्याग करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!