बालक अबोध होते हैं, उनमें स्वाभाविक दोष रहते हैं।
पालक सबोध होते हैं, उनमें अस्वाभाविक दोष रहते हैं।
बालकों की तीव्रतम कषाय (क्रोधादि) भी पालकों की न्यूनतम से कम होती है।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
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बालक एवं पालक को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः पालक को दोष रहित रहना परम आवश्यक है , ताकि बालक को सही दिशा निर्देश दे सकने में सफल होगे।
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बालक एवं पालक को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः पालक को दोष रहित रहना परम आवश्यक है , ताकि बालक को सही दिशा निर्देश दे सकने में सफल होगे।