Category: 2016

ज्ञान चेतना

11, 12 गुणस्थान में मोह/कषाय नहीं है, तब भी ज्ञान चेतना नहीं, क्योंकि ज्ञानावरण हटा नहीं । 13, 14 गुणस्थान में ज्ञान पूरा पर चेतना

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कषाय

11, 12, 13 गुणस्थान में कषाय नहीं है, भूतपूर्व नय की अपेक्षा से लेश्या कही गयी है । इनमें योग है और यह योग पहले

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63 कर्मों का नाश

63 कर्मों का नाश करके केवलज्ञान होता है । इनमें तीन आयुबंध भी है, पर मनुष्य के अलावा बाकी 3 आयुबंध का नाश इस अपेक्षा से

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ज्ञान

मति आदि 4 ज्ञान शक्तियाँ आत्मा में स्वाभाविक नहीं हैं । कर्म सापेक्ष होती हैं । तत्वार्थ सूत्र टीका

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आयुबंध

अपकर्ष काल में, लेश्या के 26 भागों में से यदि बीच के 8 भाग में वह जीव हो, तभी आयुबंध होगी । (कर्मकांड़ के अनुसार, धवला जी में

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द्रव्येंद्रिय

निर्वृत्ति – रचना/बनावट आभ्यंतर – आत्मप्रदेश बाह्य – इंद्रियों का आकार/रचना उपकरण – निर्वृत्ति का उपकार करने वाली आभ्यंतर – जैसे नेत्रों का सफेद मंड़ल बाह्य

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सूक्ष्म

प्रत्येक वनस्पति के सूक्ष्म (शरीर) नाम कर्म नहीं होता । करूणानुयोग दीपक – P 31

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ज्ञान

मति, श्रुत, अवधिज्ञान – मिथ्या व सम्यक् होते हैं । (तत्वार्थसूत्र 1/31) आचार्य श्री – “च” से यहाँ मिश्र ज्ञान भी लेना चाहिये । पाठशाला

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मंगल आशीष

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