Category: 2017

अभेद

स्त्री पुरुष – भेद दृष्टि, जीव – अभेद; जीव, अजीव – भेद दृष्टि, द्रव्य – अभेद; और हम अपने और भाई के बच्चों में भेद

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ज्ञान/लक्षण

क्या मति/श्रुत ज्ञान, आत्मा के लक्षण हैं ? नहीं ये तो विभाव हैं । केवलज्ञान/दर्शन ? नहीं ये तो किसी किसी के ही, तथा हर

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पंचास्तिकाय

पुद्गल को अस्तिकाय उपचार से कहा है, क्योंकि शुद्ध पुद्गल (अणु) एक प्रदेशी ही होता है । मुनि श्री ज्ञानसागर जी

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सम्यक्त्व

उपशम सम्यक्त्व – चारों गतियों में देव गति के अलावा, सिर्फ़ पर्याप्तक अवस्था में ही । क्षायिक तथा क्षयोपशमिक सम्यग्दर्शन – चारों गतियों के पर्याप्तक

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सम्यग्द्रष्टि की संख्या

ढ़ाई द्वीप के चौथे गुणस्थानवर्ती मनुष्य 700 करोड़ हैं । तीनों लोक में सम्यग्द्रष्टि जीव असंख्यात हैं । पं. श्री रतनलाल बैनाड़ा जी

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मिथ्यात्व

जो अनध्यवसाय*, संशय व विपर्यय युक्त हो । *अनध्यवसाय = बिना उद्यम; जैसे कुछ है, होगा, हमें क्या ! क्षु. ध्यानसागर जी

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परमुख

आयु और मोहनीय कर्म प्रकृतियों का परमुख उदय नहीं होता है । बाकी प्रकृतियों का स्वमुख और परमुख दोनों उदय होते हैं । श्री हरिवंश

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पंचमकाल में सम्यग्दर्शन

सम्यग्द्रष्टि जन्म नहीं लेते, इसका प्रमाण ? पं. श्री रतनलाल बैनाड़ा जी आचार्य श्री विद्यासागर जी – रत्नकरण्ड़ श्रावकाचार गाथा 36 में लिखा है –

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दिग्व्रत

दिग्व्रत की सीमा के बाहर उपचार से महाव्रत क्यों कहा जबकि प्रत्याख्यान का सदभाव है ? प्रत्याख्यान इतना मंद है कि उसे ढ़ूँढ़ पाना भी

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मंगल आशीष

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