Category: 2010
सासादन से गतियाँ
सासादन गुणस्थान से नरक गति के अलावा, तीनों गतियों में जीव जाता है ।
पंचम काल
पंचम काल में सातवें गुणस्थान तक ही क्यों ? पंचम काल में सातवें गुणस्थान तक ही, क्योंकि श्रेणी माडने ( चढ़ने ) के लिये उत्तम
परनिंदा
परनिंदा आदि से नीच गोत्र कर्म में विशेष अनुभाग पड़ता है । बाकी 6 कर्मों में प्रदेश बंध होता है ।
सम्यक्चारित्र
सम्यग्दर्शन तो जीव जन्म के साथ लेकर आ सकता है पर सम्यक्चारित्र तो समझदार होने पर पुरूषार्थ के द्वारा ही आता है । आचार्य श्री विद्यासागर
माया शल्य एवं माया कषाय
शल्य – पीड़ा देने वाली वस्तु को कहते हैं । काँटें जैसी चुभती रहती है, कषाय – हर समय नहीं रहती । व्रती के माया
मिश्र-गुणस्थान में कार्मण-काययोग
मिश्र-गुणस्थान में कार्मण-काययोग क्यों नहीं ? मिश्र-गुणस्थान पर्याप्तक के ही होता है क्योंकि इसमें मरण नहीं होता है, और कार्मण-काययोग विग्रहगति और अपर्याप्तक अवस्था में
मिथ्यात्व/अनंतानुबंधी
मिथ्यात्व के उदय आने पर भी अनंतानुबंधी एक आवली के बाद ही उदय में आती है । क्योंकि उदयावली की वर्गणाओं की संयोजना नहीं होती,
परिषह-जय
परिषह = सब ओर से, परिषह-जय – सब ओर से सहना । प्रतिकूल परिस्थितियों में अनुकूल महसूस करना, इससे कर्मों का संवर और निर्जरा होती
पर्याय
पर्याय का ज्ञान होना बाधक नहीं है, पर्याय में मूढ़ता का आ जाना बाधक है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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