Category: 2020
विभंगावधि / मरण
विभंगावधि* के साथ मरण नहीं होता । मरण आने पर विभंगावधि छूट जाता है । * प्राकृत-भाषा में विहंगावधि कहते हैं आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
स्व-पर
अन्य द्रव्यों में परिणाम – यदि शुभ तो पुण्य, अशुभ तो पाप । स्वयं में परिणाम – दु:खों का क्षय । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
प्रतिक्रमण
घर में रह रहे व्रती को प्रतिक्रमण करने को नहीं कहा क्योंकि वे प्रायश्चित/प्रत्याख्यान नहीं कर सकते । फिर भी कोई प्रतिक्रमण करता है तो
भाव / उपयोग
भाव (शुभ/अशुभ) मन के, उपयोग आत्मा का । भाव से उपयोग, शुभ उपयोग तो भाव शुभ, पर भाव शुभ तो उपयोग शुभ हो भी या
अभव्य और केवलज्ञान
अभव्य के अंदर भी केवलज्ञान विद्यमान है तभी तो वह केवलज्ञानावरण कर्म बांधता है । बस प्रकट नहीं कर सकता है । मुनि श्री सुधासागर
क्षुद्र-भव
सबसे छोटी आयु (एक साँस में १८ बार जन्म/मरण) वाले भव को क्षुद्र-भव कहते हैं । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
आकाश और रंग
आकाश वैसे तो अरूपी/वर्ण रहित है । पर यह पुदगल पिंड़ों से भरा हुआ है, सो चाँदनी रात में दूधिया, सूर्य से लाल/पीला, रात को
निमित्त/उपादान
उपादान अंतरंग कारण, निमित्त उपादान को उभार देता है । मुनि श्री प्रमाण सागर जी
भद्र-मिथ्यादृष्टि
मंद-कषायी मिथ्यादृष्टि को भद्र-मिथ्यादृष्टि कहते हैं । ये सत्य को पाना तो चाहते हैं पर पा नहीं पाते । 123 जीव यहाँ से विदेह जाकर,
अवधि-ज्ञान
अवधि-ज्ञान, भव तथा लब्धि (तप से) -प्रत्यय दोनों प्रकार का । यह द्रष्यात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं, क्योंकि अवधि-ज्ञान के समय मति/श्रुत-ज्ञान पर उपयोग नहीं
Recent Comments