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आचरण
पंचम काल के “अंतिम-धर्मात्मा” तीन साल साढ़े आठ माह पहले (पंचमकाल के अंत से) समाप्त हो जायेंगे । उत्तर पुराण 558 प्रश्न : अंतिम धर्मात्मा
आकाश / द्रव्य
आकाश के एक-एक प्रदेश में अनंत द्रव्य (पुदगल) आ सकते हैं, पर एक प्रदेश में एक जीव नहीं रह सकता है क्योंकि प्रत्येक जीव असंख्यात
वर्ग >> निषेक
वर्ग = परमाणु वर्गणा = समान जाति के वर्गों का समूह स्पर्धक = समान जाति की वर्गणाओं का समूह निषेक = भिन्न भिन्न जाति के
कर्मबंध
कुछ कर्म 7वें गुणस्थान में ही बंधते हैं जैसे अहारक-द्विक (शरीर+अंगोपांग), इनका उदय 6 गुणस्थान में । इन कर्मों के बंध का कारण भी राग (संयम अवस्था
उदीरणा
किसी भी कर्म के अनुभाग, प्रकृति, प्रदेश तथा स्थिति की उदीरणा साथ साथ होती है । मुनि श्री सुधासागर जी
वेदनीय की स्थिति
असाता की उत्कृष्ट स्थिति 30 कोडाकोडी सागर, साता की 15 । पर असाता के संक्रमण की अपेक्षा, साता की 30 कोडाकोडी सागर भी हो सकती
केवलज्ञान
केवलज्ञान आत्मा की पर्याय नहीं है, ज्ञानगुण की पर्याय है । मुनि श्री सुधासागर जी
क्षयोपशम सम्यग्दर्शन की स्थिति
क्षयोपशम सम्यग्दर्शन की उत्कृष्ट स्थिति 66 सागर से कुछ कम, क्योंकि आखिरी अंतर्मुहुर्त में या तो क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्त करें अथवा पहले या दूसरे या
आकिंचन्य
व्यवहार आकिंचन्य – अपने पास किंचित रखना (ताकि जीवन चल सके ) निश्चय आकिंचन्य – किंचित भी मेरा नहीं है । चिंतन
पुद्गल का वर्ण
पुद्गल की स्वाभाविक परिणति (वर्ण) अंधकार है, प्रकाश तो नैमित्तिक है । मुनि श्री सुधासागर जी
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