Category: 2018
7 वें गुणस्थान को अप्रमत्त क्यों ?
7 वें गुणस्थान में बुद्धिपूर्वक अप्रमत्त दशा रहती है । पूर्ण अवस्था तो 14 वें गुणस्थान में ही होती है । व्य. कृ. – मुख्तार
अगुरुलघु
शरीर को अति भारी/हलका नहीं होने देता । अन्य पुदगलों में भी यही गुण पैदा करता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
मोहनीय का बंध
मोहनीय का उदय/सत्ता दसवें गुणस्थान तक (बाकी 3 घातिया जैसा), पर बंध तीनों से अलग, नौवें गुणस्थान तक ही जबकि बाकी तीनों का दसवें तक होता
प्रदेश बंध
11 से 13 गुणस्थानों में प्रदेश बंध, निचले गुणस्थानों के प्रदेश बंध से बहुत कम होता है , क्योंकि योग बहुत कम हो जाता है
अनाचार
अचौर्य के अनाचार में – “साधर्माविसंवाद” का क्या आश्रय ? श्री पी.एल. बैनाड़ा जी साधर्मी की चीजों को छिपाना/मेरा तेरा कहना ।
शक्ति
2 भेद हैं – क्षयोपशमिक – पहले गुणस्थान से बारहवें तक क्षायिक – तेरहवें गुणस्थान तथा आगे आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
निगोदिया
2 मत हैं – साधारण वनस्पति कायिक पर आ. श्री विद्यासागर जी की असहमति है… क्योंकि निगोदिया… • वनस्पति रूप नहीं हैं • योनियाँ भी
समभाव
निगोदिया जीवों से भी सीख लें – वे भोजन भी साथ साथ समभाग लेते हैं । चिंतन
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