Category: 2020
पुण्य
पुण्य की स्थिति पाप-रूप*, सो घटाओ पुण्य से । पुण्य की निर्जरा का कहीं उल्लेख नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी * जैसे पाप-प्रकृतियों की
साता / असाता
एकेन्द्रिय में असाता की बहुलता होती है । जैसे जैसे इंद्रियां बढ़ती जाती हैं, साता भी बढ़ती जाती है । बहुतायत मनुष्यों में अधिकतर साता
कर्म-बंध
काय-योग से शरीर के योग्य वर्गणायें, वचन-योग से वचन के योग्य वर्गणायें, मन-योग से मन के योग्य वर्गणायें लगातार/automatically ग्रहण होती रहतीं हैं । मुनि
द्रव्य-सम्यग्दर्शन
द्रव्य-लिंगी मुनि के द्रव्य-सम्यग्दर्शन तो होगा क्योंकि वे चर्या निभाते समय जीवों की रक्षा तो कर रहे हैं ना ! पर उनको देखकर दूसरों को
अमूर्तिक-द्रव्य
अमूर्तिक-द्रव्य, इंद्रियातीत पर ज्ञानगम्य (मति,श्रुत से भी) होते हैं । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी मति/श्रुत-ज्ञान, इंद्रियों के माध्यम से ही नहीं, मन के माध्यम और
सूक्ष्म-स्थूल
चक्षु के अलावा चारों इंद्रियों के विषय सूक्ष्म-स्थूल होते हैं । चूंकि इनमें स्थूल Element हैं, इसलिये ये बाधित हो जाते हैं (गंध, शब्द आदि)
वैक्रियक के संहनन उदय
वैक्रियक के संहनन उदय कैसे घटित करें ? योगेन्द्र परमुख उदय में आयेगा, संस्थान के रूप में । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
पदार्थ / द्रव्य / तत्व
वस्तु को द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव की अपेक्षा समझा जा सकता है, जैसे – 1. जीव पदार्थ – द्रव्य की अपेक्षा वस्तु है 2.
जैन धर्म के नाम
1. निर्ग्रन्थ-धर्म : ग्रंथी रहित यानि दिगम्बर मुनियों का धर्म । सम्राट अशोक के शिलालेखों में वर्णन आता है । 2. अर्हत्-धर्म : अरिहंत भगवान
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