Category: वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर
भगवान महावीर जयंती
जीना है तो जीने दें, वरना जीना सम्भव नहीं हो पायेगा। दूसरे को मारा नहीं सो अहिंसा पर दूसरे को बचाया नहीं तो अहिंसा का
रूप / स्वरूप
विनोबाभावे जी के घर एक अनाथ बच्चा रहता था। विनोबा जी की माँ उस बच्चे को गरम और अपने बेटे को ठंडी रोटी देतीं थीं।
अतृत्प
गुरुवर मुनि श्री क्षमा सागर जी का समाधि दिवस। इस दिवस को “क्षमा दिवस” के रूप में मनायें।
ग्रंथि
ग्रंथि 2 प्रकार की – 1) चीज़ों के सद्भाव में (Superiority Complex से)… a) वैभव की ग्रंथि b) व्रतियों में त्याग की 2) चीज़ों के
क्षमापर्व
खम्मामि सव्वजीवाणां, सव्वे जीवा खमन्तु मे। मैं पहले सब जीवों को क्षमा करता हूँ और अपेक्षा रखता हूँ कि सब जीव मुझे भी क्षमा करें।
उत्तम ब्रह्मचर्य
जब हम आत्मानुराग से भर गये हों, देहासक्ति से ऊपर उठ गये हों, वहीं ब्रह्मचर्य है। परिणामों की अत्यंत निर्मलता का नाम ब्रह्मचर्य है। मुनि
उत्तम आकिंचन्य
अब कुछ करना नहीं, अब तो भावना और उपाय/साधना के फल आने शुरु हो गये, भरेपन का भाव आने लगा है। सहारे की भावना बुरी
उत्तम त्याग
अवगुणों को छोड़ने का मन बना लें, उन्हें ग्रहण न करें, इसी का नाम त्याग है। मुनि श्री क्षमासागर जी
उत्तम तप
विषय-भोग जीवन को मुश्किल में डालते हैं। तपस्या मुश्किल में नहीं डालती । तपस्या तो जीवन को आसान बना देती है। जिसके मन में निरन्तर
उत्तम संयम
अपने मन-वचन और इन्द्रियों को संयमित कर लेना, नियमित कर लेना, नियन्त्रित कर लेना, इसी का नाम संयम है। यदि हमने अपने जीवन में सत्य-ज्योति
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