Category: 2010

बलभद्र

सारे बलभद्र मोक्ष नहीं जाते । ( बलदेव स्वर्ग गये ) पं.रतनलाल बैनाडा जी

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काय

प्रदेशों के समूह को काय कहते हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी

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मोह

भगवान को और समवसरण को बड़े बड़े ज्ञानी/क्षायिक सम्यग्दर्शी क्यों छोड़ कर चले जाते हैं ? मोह की वजह से, मोह के संसार में बड़ा

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कल्पातीत

  16 स्वर्ग के ऊपर के देवों को कहा जाता है । कल्प :- कल्पना भेदों की ( अलग तरह के देव ), भवनवासियों में

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रोग

असाता के उदय से और असाता होती है, उससे —» शोक —» असाता के अनुभाग में वृद्धि —» रोग में वृद्धि । उपचार – समता

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विग्रह गति

  1. विग्रह याने शरीर, जो शरीर के लिये गति करे । 2. विग्रह याने विरूद्ध ग्रह, कर्म का ग्रहण करते हुये भी नोकर्म का

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प्रदेश/परिमाण

लोह पिंड़ बहुत प्रदेश वाला तथा अल्प परिमाण वाला होता है, रूई अल्प प्रदेश वाली तथा महा परिमाण वाली होती है । तत्वार्थ सुत्र टीका

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अनंत/संख्यात- भेद

अनंत के अनंत भेद होते हैं । संख्यात के संख्यात भेद होते हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी

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विक्रिया

  विविध करने का नाम विक्रिया है । कल्पातीत देवों में एकत्व विक्रिया ही होती है । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी

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श्रवण इंद्रिय

इंद्रियों में सबसे हितकारी – श्रवण इंद्रिय । यही उपदेश प्राप्त कर हित/अहित का भेद करता है । रसना भी उपदेश श्रवण इन्द्रिय से सुनकर

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मंगल आशीष

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April 23, 2010

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