Category: 2013
क्षयोपशमिक सम्यग्दर्शन
अनंतानुबंधी चतुष्क, मिथ्यात्व और सम्यक् मिथ्यात्व, इन 6 प्रकृतियों का उदयाभावी क्षय और आगामी काल में आने वाले इन्हीं के स्पर्धकों का सदवस्थारूप उपशम तथा
सदवस्थारूप-उपशम
सर्वघाती स्पर्धक रूपी सेना के गुप्तचर जो किले में उदित हो गये हैं, उनका तो अभाव (क्षय) कर दिया, पर जो सेना किले की ओर
भावकर्म
भावकर्म, भावाश्रव, भावबंध सब चेतन हैं । कषाय आदि आत्मा के भाव चेतन ही हुये न ! पं श्री रतनलाल बैनाड़ा जी
भवविपाकी
जिन प्रकृतियों का फल भव-विशेष में ही होता है । यथार्थत: आयुकर्म की चारों प्रकृतियों को ही भवविपाकी माना है परन्तु गति नामकर्म, आयुकर्म का
क्षायिक चारित्र
क्षायिक चारित्र होता तो है 12 वें गुणस्थान से, पर नैगमनय (भविष्य) की अपेक्षा 8 वें गुणस्थान से माना है । पं श्री रतनलाल बैनाड़ा
कर्तृत्व
पुदगल व जीवों में क्रिया होने से कर्तृत्व समझ आता है, पर धर्म आदि द्र्व्यों में ? सभी द्रव्यों में स्वक्रिया होती है जैसे अस्तित्व
देव आयु बंध
देवगति से आकर पुन: देव आयु बंध अपर्याप्त काल में नहीं बंधती । पर्याप्तक होने के अंतर्मुहूत बाद बंध सकती है । श्री राजवार्तिक –
शुद्धोपयोग
यह तो कषाय रहित अवस्था में होता है, यानि कि 12वें गुणस्थान से, वैसे 7वें गुणस्थान से माना गया है क्योंकि यहाँ अंश मौजूद हैं
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