Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
कर्मोदय
जैसे नख़ और केश बार-बार उग आते हैं, वैसे ही कर्मोदय है। आचार्य श्री विद्यासागर जी (जैसे नख़/ केश को बार-बार काटना पड़ता है ऐसे
वचन
ऐसे सचित्त* शब्दों को मत बोलो जिससे दूसरे का चित्त उखड़ जाय। आचार्य श्री विद्यासागर जी *कीड़ों सहित (जहरीले)
गुरु
जिसने अपना गुरूर छोड़ दिया हो, वह गुरु है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
मन
मन की आज्ञा मानना नहीं, नहीं तो नौकर कहलाओगे। आचार्य श्री विद्यासागर जी
आत्मीयता
मैं आत्मा हूँ औरों से आत्मीयता मेरी श्वास है। (जब तक संसार में हूँ)। आचार्य श्री विद्यासागर जी
हर्ष / संघर्ष
एक में हर्ष तो हो सकता है, लेकिन संघर्ष दो के बीच में ही होगा। आचार्य श्री विद्यासागर जी
सही दृष्टि
आँखें न मूँदो*, आँखें भी न दिखाओ**, सही देखना***। आचार्य श्री विद्यासागर जी * अन्याय को नज़र अंदाज़ न करना। ** क्रोध/ घमंड नहीं करना।
गुरुकुल
लघु को गुरु बनाना*, गुरुकुल परम्परा है। आचार्य श्री विद्यासागर जी (* गुरु के कुल में शामिल कर लेना)
मौन
पशु न बोलने से दुःख उठाते हैं, मनुष्य बोलने से। आचार्य श्री विद्यासागर जी
ज्ञान
ज्ञेय से ज्ञान बड़ा, आकाश आया छोटी आँखों में। आचार्य श्री विद्यासागर जी (दूसरी लाइन में (,) कॉमा के सही ज्ञान से अर्थ सही हो
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