Tag: ज्ञान
दर्शन / ज्ञान
दर्शन प्रमाण नहीं, ज्ञान प्रमाण है । देखने के लिये गर्दन घुमायी पर वस्तु दिखी नहीं, यह दर्शन हुआ । प्रथम दर्शन को ज्ञान/अवग्रह कहते
ज्ञान / ध्यान
समीचीन उद्देश्य बनाने के लिये ज्ञान की आवश्यकता है, पर उसे पूर्ण करने के लिये ध्यान की । आचार्य श्री विद्यासागर जी
ज्ञान / ध्यान
बहुत पढ़ना ज्ञान का विषय है, बार बार पढ़ना ध्यान का, जैसे माला जपना । मुनि श्री सुधासागर जी
ज्ञान
छोटा सा जुगनू पूरे आकाश के अंधकार पर भारी पड़ जाता है । हमारे हृदय का अज्ञान भी ज्ञान के दीपक से समाप्त हो सकता
ज्ञान और धर्म
ज्ञान पूर्ण नहीं तो धर्म को भी अपूर्ण मानें ? ज्ञान अभिव्यक्ति है इसलिये अपूर्ण, धर्म अनुभूति है इसलिये पूर्ण । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
ज्ञान
धन होने पर धनी कहलाते हैं, ज्ञान होने पर ज्ञानी ! पर ज्ञान तो कीड़े मकोड़ों को भी होता है ? उनका ज्ञान गुजारे भर
प्रार्थना और ज्ञान
क्या ज्ञान की कमी से प्रार्थना का प्रभाव कम हो जाता है ? बच्चों/पशुओं/अल्पबुद्धि के नहीं, लेकिन जो संसार का ख़ूब ज्ञान रखते हों/ संसार
भक्ति / ज्ञान / चारित्र
भक्त बार बार जन्म माँगता है; ज्ञानी बार बार जन्म ना मिले, ऐसी भावना भाता है; चारित्रधारी कुछ भी नहीं माँगता, पर उसे बिना माँगे
धर्म और ज्ञान
धर्म से मन में दया बढ़ती है, ज्ञान से वैराग्य । दया आने से धर्म और बढ़ता है, वैराग्य से ज्ञान में वृद्धि होती है
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