Tag: मुनि श्री सुधासागर जी
अन्य मतों की लोकप्रियता
जिन मतों में विचारात्मकता की प्रमुखता है वे लोकप्रिय हो रहे हैं । जैन धर्म में आचारात्मकता की प्रमुखता है, इसलिये बहुमत को कठिन लगता
जैन धर्म
जैन धर्म सब जीवों के लिये है, पर जैन श्रावकों के लिये विशेष अनुष्ठान हैं । अन्य श्रावक गोत्र बदल कर विशेष क्रियानुसार जैन बन
ज्ञानी
ज्ञानी की हर क्रिया में ज्ञान झलकता है – बोलने, चलने, देखने, सुनने में, चाहे परिस्थिति अनुकूल हो या प्रतिकूल, चाहे वस्तु अच्छी हो या
दिगम्बरत्व
वैज्ञानिक को अद्भुत (संसारिक) सिद्धांत मिल गया तो निर्वस्त्र होकर सड़क पर दौड़ता हुआ युरेका युरेका पुकारने लगा । दिगम्बर साधू को तो अद्भुत आत्मिक
दान
अपने से अधिक पुण्यवान को देना, दान है; जैसे गुरुओं को आहार दान । कम पुण्यवान को तो सहायता/भीख दी जाती है । मुनि श्री
जिनवाणी और संतोष
भगवान की वाणी का अमृतपान करके भी जीवन में संतोष क्यों नहीं आ रहा है ? अमृत पीने से संतोष आये ही, ऐसा नियम नहीं
आरती
बड़ों की आशिका अपनी ओर लें, ताकि उनके गुण/ज्योति हममें भी आयें, छोटों (दुल्हे आदि) की अपनी ओर से उनकी ओर करते हैं, ताकि हमारी
धर्मात्मा
रावण 8 घंटे पूजादि करता था, पर बाकि 16 घंटे भगवान के बताये मार्ग से विपरीत आचरण करता था, इसलिये दुर्गति पायी । मुनि श्री
लापरवाही
दुर्घटनायें मोड़ों पर कम, सीधी सड़कों पर अधिक होती हैं । काँटे वहाँ ज्यादा लगते हैं जहाँ फूल बिछे होते हैं । दु:ख सुखों के
बड़ा पाप/पुण्य
पाप से भी बड़ा पाप है – “पाप को स्वीकार ना करना” । स्वीकार करते ही वह प्रायश्चित बन जाता है, तप कहलाता है ।
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