Tag: ब्र. नीलेश भैया

एकत्व

जब अकेला होना ही है, तो उसे स्वीकारते क्यों नहीं ? अलगाव को भी अपने जीवन के किसी कोने में जगह दो, और अलगाव हो

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उपयोग/स्वभाव

दो प्रश्न हमेशा अपने से पूछें – मैं कहाँ हूँ ? – जहाँ मेरा उपयोग है । मैं कैसा हूँ ? – जैसा मेरा स्वभाव

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कौन हो तुम ?

सत्य की तलाश में एक ज़िज्ञासु गुरु के दरवाजे पर पहुँचा, खटखटाया । गुरु – कौन हो ? शिष्य – इस प्रश्न के उत्तर की

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भय

हिटलर ने थोड़े समय ड़राया, सालों राज्य किया । हम भी यदि ग्रहों/रागी देवी देवताओं से ड़र गये तो ज़िंदगी भर वे हम पर राज्य

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लगाव

हमारे तो लगावों के तारों में भी गांठें हैं, वे गांठे कब खुल जायेंगी, इसका भय बना रहता है , तभी तो हम अपने बेटे/पत्नी

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प्रगति

यदि प्रगति कर रहे हो तो किंचित दिखना तो चाहिये । यदि बर्फ खाने जा रहे हो / बर्फ के करीब जा रहे हो तो शीतलता तो

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अहंकार

अज्ञान का अंधकार भटकाता है, पर ज्ञान का अहंकार तो और भी ज्यादा भटकाता है । ब्र. नीलेश भैया

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इच्छा

इच्छाओं को सीमाओं में बांधे रखिये, वरना ये गुनाहों में बदल जायेंगी । ब्र. नीलेश भैया

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मज़ा/सुख/आनंद

मज़ा – मन को प्रफुल्लित करता है, सुख – शरीर को प्रफुल्लित करता है, आनंद – आत्मा को प्रफुल्लित करता है । मन का मज़ा,

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संगति

गांव में रहो तो वैसी ही भाषा, वैसा ही आचरण हो जाता है, शहर की बात तो कर लेते हैं पर वैसी भाषा और आचरण

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मंगल आशीष

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