Tag: मुनि श्री प्रमाणसागर जी

चमत्कारी प्रतिमा

प्राय: पाषाण की प्रतिमाओं में अतिशय देखा जाता है, कारण !! प्राचीनता । (भक्तों की निगाहें टिकती हैं,धातु की प्रतिमाओं पर नहीं —- मुनि श्री

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मरघट

ऐसा कोई घर है जिसमें मरण ना हुआ हो ? हम जिसे मरघट कहते हैं वह तो “चलघट” है, मरघट तो हमारे घर हैं ।

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चैत्यालय अभिषेक

कलशों/मंदिर निर्माण के समय चैत्यालय का अभिषेक होता है । एक बड़े दर्पण में मंदिर के बिम्ब पर अभिषेक करते हैं । मुनि श्री प्रमाणसागर

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नोकर्म वर्गणायें

द्रव्य, काल, क्षेत्र, भव, भावों के अनुसार नोकर्म वर्गणायें मिलती हैं जैसे अफ़्रीका में काले रंग की नोकर्म वर्गणायें । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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यंत्र

यंत्र को भगवान से टिकाकर नहीं रखना चाहिये । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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प्रमत्त / अप्रमत्त

आहारादि प्रवृत्ति प्रमत्त अवस्था, प्रवृति में सावधानी अप्रमत्त अवस्था । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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पीछी

श्रावकों को पीछी का उपयोग नहीं करना चाहिये क्योंकि यह मुनियों का उपकरण है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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अनुमान / अनुभव

अनुमान अप्रत्यक्ष, अनुभव प्रत्यक्ष । कभी कभी अनुमान अनुभव से ज्यादा कारगर हो जाता है, जैसे ज़हर खाने से मृत्यु हो जाती है । मुनि

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निमित्त / पुरुषार्थ

भटकन का मुख्य कारण पुरुषार्थ की हीनता । मारीच, भगवान का निमित्त पाकर भी भटकता रहा और मुनियों के संबोधन से पुरुषार्थ जाग्रत कर कल्याण

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अनादि सिद्ध

अनादि सिद्ध यानि जो अनादि से सिद्ध हैं, जैसे णमोकार मंत्र, उसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं/उसके प्रभाव को सिद्ध करने की जरूरत नहीं ।

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मंगल आशीष

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