Tag: मुनि श्री सुधासागर जी
पूजा में स्थापना
बैठकर पूजा करने वालों को ठौने में स्थापना बैठकर ही करना चाहिये, वरना स्थापित द्रव्य नाभि से नीचे हो जायेगा । मुनि श्री सुधासागर जी
पुण्य
पुण्य की ज़रूरत तब तक, जब तक हमसे पाप हो रहा है । कीचड़ पाप है, इसे साफ करने पुण्य रूपी जल चाहिये, बिना पानी
मुनि
आदिनाथ भगवान के समय से लेकर पंचम काल के अंत तक तीनों प्रकार के मुनि थे, हैं और रहेंगे । भाव/द्रव्य/भ्रष्ट लिंगी । मुनि श्री
अभिषेक
जो भगवान के लिये अभिषेक करता है या जो अभिषेक करता ही नहीं है, दोनों मिथ्यादृष्टि हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
योग / उपयोग
योग से शरीर और मन नियंत्रित, उपयोग से चेतना । मुनि श्री सुधासागर जी
मंदिर का शिखर
मंदिर का शिखर आप लोगों के घर से ऊँचा होना चाहिये , वरना धन बढ़ेगा, धर्म कम होगा । मुनि श्री सुधासागर जी
प्रतिमा और गुणस्थान
5वाँ गुणस्थान पहली या दूसरी प्रतिमा वालों के ? मुनि श्री उत्तमसागर जी 12 शीलव्रतधारी के ही संयम माना जायेगा । पहली प्रतिमा में पाप
आचार्य कुंदकुंद और विदेह यात्रा
यदि आचार्य कुंदकुंद ने सीमंधर स्वामी के दर्शन किये होते तो वे कहीं तो लिखते – कि साक्षात सीमंधर भगवान ने ऐसा कहा था ।
नियति
भरत को सब ओर से दबाब ड़ाला गया कि वे अयोध्या की गद्दी पर बैठें – माँ, गुरू, राम सबने । भरत – मेरे भाग्य
त्रस
पंचास्तिकाय में वायु/अग्निकायिक को त्रस, उनकी स्वगति की अपेक्षा कहा है । मुनि श्री सुधासागर जी
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