Tag: मुनि श्री सुधासागर जी
अधर्म
वो क्रियायें जिन्हें करते करते ऊब जायें, फ़िर चाहे वे क्रियीयें धार्मिक ही क्यों ना हों । मुनि श्री सुधासागर जी
नौकरी
भगवान ने गृहस्थ के षटकर्मों में खेती, शिल्प, लेखनादि बताये हैं पर नौकरी नहीं बतायी । ये तो दासता है, इसी को अधम चाकरी कहा
मरण / उद्यापन
इन अवसरों पर भेंट/भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिये, उनके परिवार/व्रती को देना चाहिए । मुनि श्री सुधासागर जी
मुनीम / मुनि
मुनीम भूत का हिसाब रखता है, भूत पर ही दृष्टि रहती है; मुनि की भविष्य पर । मुनि श्री सुधासागर जी
साधन / साध्य
देव, गुरू, शास्त्र को साधन ही नहीं, साध्य बनाएँ । मुनि श्री सुधासागर जी
धर्मनीति/राजनीति
अपने गुनाह को स्वीकार करने वाले को धर्मनीति गले लगाकर शाबाशी देती है, राजनीति सज़ा । मुनि श्री सुधासागर जी
श्री राम
सबसे ज्यादा पूज्य राम को क्यों माना गया है ? क्षमाभाव की उत्कृष्टता की वजह से । कैकई से ही आर्शीवाद मांग रहे थे कि
गलती
गलती होने पर निरीह बनकर, क्षमा मत मांगो, दंड़ (प्रायश्चित) मांगो । ताकि उधारी (कर्मों की) समाप्त हो जाये, हिसाब बराबर हो जाये । मुनि
भोग/सुख
रावण ने पूरी ज़िंदगी भोग भोगे, राम ने वनवास । रावण को हर साल रामलीला मैदान में जलाया जाता है, राम को मोक्ष सुख हमेशा
हितकारी
रागियों के मीठे वचन भी अहितकारी हो सकते हैं । पर गुरूओं के कठोर वचन भी हितकारी होते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
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