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सुख / दु:ख
पराश्रित सुख से उत्तम स्वाश्रित दुःख है, तभी तो साधु विषय-सुखों का त्याग करके तप के दुःख को अंगीकार करके सुखी रहते हैं। क्षु.श्री ध्यान
संसार के सुख दु:ख
दो बच्चे देरी से स्कूल पहुँचे । कारण ! पहले का सिक्का गिर गया था । दूसरा सिक्के पर पैर रक्खे खड़ा रहा था ।
सुख और उम्र
जिंदगी भर “सुख” कमाकर दरवाजे से घर में लाने की कोशिश करते रहे। पता ही ना चला कि कब खिड़कियों से “उम्र” निकल गई !!
सुख
संसार में सुख, दर्पण में मुख होता नहीं, दिखता है । साधनों में नहीं साधना से, साध्य को पाने में मिलता है । आर्यिका श्री
सुख
जो “प्राप्त” है, वह “पर्याप्त” है। इन शब्दों में सुख अपार है। (मंजू)
सुख
सुख प्राप्त करने की वस्तु नहीं, सुख वस्तु में है ही नही । यह तो पहचानने की चीज है । महाभारत
सुख
सुख की परिभाषा – डाक्टर/ बीमार – शरीर की निरोगता ज्योतिषी – घटनाओं की अनुकूलता धर्म – परोपकार/ त्याग/तप। तो सच्चा सुख क्या ? जो
सुख/दुख
फुलों की तरह खिले, तो तोड़ लिये जाओगे । पत्थर की तरह तराशे गये, तो भगवान बन जाओगे । (राजेन्द्र-दिल्ली)
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