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संसार के सुख दु:ख
दो बच्चे देरी से स्कूल पहुँचे । कारण ! पहले का सिक्का गिर गया था । दूसरा सिक्के पर पैर रक्खे खड़ा रहा था ।
दु:ख
अभाव दु:ख का कारण नहीं, अभाव की अनुभूति/एहसास कारण है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सुख/दुख
फुलों की तरह खिले, तो तोड़ लिये जाओगे । पत्थर की तरह तराशे गये, तो भगवान बन जाओगे । (राजेन्द्र-दिल्ली)
दुनिया का सच
लोग दूल्हे के तो आगे चलते हैं, पर अर्थी के पीछे। दुनिया सुख में तो आगे रहती हैं, पर दुख में पीछे हो जाती है
सुख/दुख
सुख/दुख में रहना सामान्य बात है। दुख सह लिए , तो फायदे में, सुख सहे , तो घाटा। चिंतन
दु:ख
ग्वालियर के गुलाबजामुन तथा गुलाब नर्तकी प्रसिद्ध हैं । गुरू – घर घर के दु:ख तो एक ही नाम से हैं बस रूप अलग अलग
दु:ख
संसार में दु:ख नहीं होते तो मोक्षमार्ग भी नहीं होता । मुनि श्री सिद्धांतसागर जी
दु:ख
अधूरे तो हम सब हैं, पर ज्ञानी इस अधूरेपन को दूर करने में लगातार प्रयत्नशील रहता है । अज्ञानी प्रयत्न नहीं करता, बस दु:खी रहता
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