उत्कृष्ट प्रतिमा वालों (श्रावक – जघन्य-1 से 6 प्रतिमा, मध्यम-7 से 9, उत्कृष्ट-10-11 प्रतिमा वाले) को भी अगारी कहा, क्योंकि घर व परिग्रह का पूर्ण रूप से त्याग नहीं हुआ है; ये ही उनको श्रावक बनाए रखता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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अगाड़ का तात्पर्य है कि अपने देव शास्त्र और गुरु में श्रद्धा रखते हुए भी विशेष जिनालय या जिनबिम्ब के प़ति यह मेरा है,या अन्य का है,ऐसा विचार करना क्षयोपशम सम्यग्दर्शन अगाड़ दोष कहलाता है। मुनि श्री ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य। अतः जीवन में पूर्ण परिग़ह छोड़ना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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अगाड़ का तात्पर्य है कि अपने देव शास्त्र और गुरु में श्रद्धा रखते हुए भी विशेष जिनालय या जिनबिम्ब के प़ति यह मेरा है,या अन्य का है,ऐसा विचार करना क्षयोपशम सम्यग्दर्शन अगाड़ दोष कहलाता है। मुनि श्री ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य। अतः जीवन में पूर्ण परिग़ह छोड़ना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।