अचौर्य, वस्तुओं के प्रति चोरी के भाव भी नहीं रखना।
शास्त्रों की चोरी* के भाव तो होने ही नहीं चाहिये, जबकि आज कुछ मुनि भी श्रावकों को ऐसा करने के लिये प्रेरित कर रहे हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
* दूसरों के शास्त्रों को अपने नाम से छपवाना
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अचौर्य का मतलब दूसरों की वस्तु को उसकी अनुमति के बिना नहीं लेना चाहिए।यह भी एक व़त है यानी स्थूल चोरी का त्याग करना होता है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। जीवन में अचौर्य व़त का पालन करना अनिवार्य है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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अचौर्य का मतलब दूसरों की वस्तु को उसकी अनुमति के बिना नहीं लेना चाहिए।यह भी एक व़त है यानी स्थूल चोरी का त्याग करना होता है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। जीवन में अचौर्य व़त का पालन करना अनिवार्य है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।