भ्रमर जैसा होना चाहिए ।
जोंक जैसा नहीं, ऐसी प्रवृत्ति तो त्याज्य है ।
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यह कथन बिलकुल सत्य है कि, “अतिथि भ्रमर की तरह होना चाहिए, जो आपको आनंदित कर दे, न की जोंक सरीखा, जो आपको दुखी कर दे ।अतिथि वह है, जो बिना सूचित किये आ जावे एवम् जिसका आप, प्रसन्नता से, आनंद ले सकें ।”
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यह कथन बिलकुल सत्य है कि, “अतिथि भ्रमर की तरह होना चाहिए, जो आपको आनंदित कर दे, न की जोंक सरीखा, जो आपको दुखी कर दे ।अतिथि वह है, जो बिना सूचित किये आ जावे एवम् जिसका आप, प्रसन्नता से, आनंद ले सकें ।”