अतीत
अतीत का तो मरण हो चुका है। पर हम स्वीकारते नहीं, उसमें बार-बार, घुस-घुस कर सुखी/ दुखी होते रहते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
अतीत का तो मरण हो चुका है। पर हम स्वीकारते नहीं, उसमें बार-बार, घुस-घुस कर सुखी/ दुखी होते रहते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने अतीत का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए अतीत में जाकर समय नष्ट नहीं करना है बल्कि वर्तमान में अच्छे जीवन के कार्य करना चाहिए। वर्तमान में देव, शास्त्र एवं गुरुओं पर श्रद्वान करके आगे बढने का प़यास करना चाहिए।
काम की बातें छोड़ कर,
सब कुछ जाएं भूल।
वर्तमान में वरना
उग आयेंगे शूल।।