अनेकांत
सब सही कहना सही नहीं। समग्रता से, दूसरे के दृष्टिकोण से देखना अनेकांत है।
गांधी जी ने कहा था, “मैं अपने दुश्मनों को भी अपना मित्र मानने लगा हूँ; क्योंकि अब मुझे दूसरों की दृष्टि से अपने को देखने की समझ आ गयी है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सब सही कहना सही नहीं। समग्रता से, दूसरे के दृष्टिकोण से देखना अनेकांत है।
गांधी जी ने कहा था, “मैं अपने दुश्मनों को भी अपना मित्र मानने लगा हूँ; क्योंकि अब मुझे दूसरों की दृष्टि से अपने को देखने की समझ आ गयी है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
One Response
अनेकांत का तात्पर्य एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्मों की प़तीत को कहते हैं। अनेकांत जैन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः दूसरे के द्वष्टिकोण से देखना अनेकांत ही है।