अपर्याप्तक

विग्रह गति में अपर्याप्तक,
योनि स्थल पर पहुँचने के बाद लब्धि या निवृत्ति,
बाद में निवृत्ति-अपर्याप्तक ही पर्याप्तक बन जाते हैं ।
ये चारों विभाजन संसारी जीवों के हैं, इसीलिये सिद्ध भगवान चारों में नहीं आते हैं ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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