अभव्य के अंदर भी केवलज्ञान विद्यमान है तभी तो वह केवलज्ञानावरण कर्म बांधता है ।
बस प्रकट नहीं कर सकता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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अभव्य का मतलब जीव कभी भी संसार के दुखों से छूटकर मोक्ष सुख प्राप्त नहीं कर सकेंगे,ऐसे जीव अभव्य कहलाते हैं। केवलज्ञान- -समस्त आवरण का क्षय होने वाले जो सर्व सराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवलज्ञान है।यह ज्ञान, चार गातियां /कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि अभव्य के अन्दर भी केवलज्ञान विघमान है,तभी तो वह केवलज्ञानावरण कर्म बांधता है, लेकिन प़कट नहीं कर सकता है।
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अभव्य का मतलब जीव कभी भी संसार के दुखों से छूटकर मोक्ष सुख प्राप्त नहीं कर सकेंगे,ऐसे जीव अभव्य कहलाते हैं। केवलज्ञान- -समस्त आवरण का क्षय होने वाले जो सर्व सराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवलज्ञान है।यह ज्ञान, चार गातियां /कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि अभव्य के अन्दर भी केवलज्ञान विघमान है,तभी तो वह केवलज्ञानावरण कर्म बांधता है, लेकिन प़कट नहीं कर सकता है।