अभिमान / मान / स्वाभिमान
मान चोट पहुँचाता है, मानी को चोट पहुँचती है।
स्वाभिमान न चोट पहुँचाता है न उसे चोट पहुँचती है क्योंकि वह पद का सम्मान करता/चाहता है, अपना नहीं।
ऐसा कृत्य न करुँ जिससे मेरे पद का अपमान हो जाय, यह स्वाभिमान है।
लोग मुझे मान दें, यह अभिमान है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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मुनि श्री प़माणसागर महाराजा ने अभिमान, मान, सवाभिमान तीनो के लिए परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है । अतः जीवन के कल्याण के लिए कभी भी अभिमान मान की कोशिश नहीं करना चाहिए। अतः जीवन में ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए ताकि जीवन अपमान से बचना परम आवश्यक है।
‘स्वाभिमान पद का सम्मान करता/चाहता है, अपना नहीं।’ Is sentence ka meaning thoda aur clarify karenge, please ?
अभिमान और स्वाभिमान में यही तो फर्क है, अभिमानी अपना सम्मान चाहता है स्वाभिमानी पद का जैसे मुनराज की नवधा भक्ति में पूजा तक हम करते हैं पर उनको अभिमान नहीं होता क्योंकि वह उसे पद की पूजा मानते हैं।