पांड़ुक-शिला पर “श्री” ही बनायें, क्योंकि अभिषेक श्रावकों की क्रिया है और श्रावकों को तो दोनों प्रकार की “श्री” चाहिये ।
वापस वेदी पर विराजमान करते समय नहीं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जिन प़तिमा के प़क्षालन को अभिषेक कहते हैं। इसका मूल उद्वेश्य अपने आत्म परिणामों में निर्मलता लाना है। श्री का मतलब सम्मान करना होता है। अतः पाडुक शिला पर श्री जी को विराजमान करते हैं तो श्रावक श्री लिख कर ही विराजमान करते हैं। वेदी पर विराजमान करते समय श्री लिखने का कोई प़ाबधान नहीं है।
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जिन प़तिमा के प़क्षालन को अभिषेक कहते हैं। इसका मूल उद्वेश्य अपने आत्म परिणामों में निर्मलता लाना है। श्री का मतलब सम्मान करना होता है। अतः पाडुक शिला पर श्री जी को विराजमान करते हैं तो श्रावक श्री लिख कर ही विराजमान करते हैं। वेदी पर विराजमान करते समय श्री लिखने का कोई प़ाबधान नहीं है।