अरहंत में दोष
13वें गुणस्थान में कर्म बांध नहीं रहे, पर बंध रहे हैं, जैसे तेल लगे शरीर पर धूल जम रही हो।
14वें गुणस्थान में बंध तो नहीं रहे पर पहले के बंधे सत्ता में तो हैं।
इसलिये 14वाँ गुणस्थान भी शील के 18000 दोष रहित नहीं है।
पूरे विशुद्ध तो सिध्द-भगवान ही हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मोह और योग के माध्यम से जीव के परिणामों को होने वाले उतार चढा़व को गुणस्थान कहते हैं।यह सही है कि 13 वें गुणस्थान में कर्म बांध नहीं रहे हैं, पर बंध रहे हैं जैसे तेल लगे शरीर पर धूल जम रही है,जबकि 14 वें गुणस्थान में बंध नही रहे हैं लेकिन पहिले के बधे सत्ता में है।इसलिये 14 वें गुणस्थान भी शील के 18000 दोष रहित नहीं है।जब कि विशुद्व तो सिद्व-भगवान् ही हैं।