धर्म/अधर्म/काल में अवगाहनत्व शक्ति नहीं होती ।
आकाश में तो पूर्णता और सब द्रव्यों के लिये होती है पर जीव/पुदगल में भी ये शक्ति होती है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
शुद्ध पुदगल(परमाणु) किसी को बाधित नहीं करता, ऐसे ही जीव शुद्ध होकर सिद्ध अवस्था में बाधा रहित हो जाता है ।
चिंतन
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4 Responses
अवगाहन का मतलब है कि वह जीवों के शरीर की ऊंचाई,लम्बाई आदि । आत्म प़देश में व्याप्त करके रहना अवगाहन है। यह भी दो प्रकार के होते हैं जघन्य और उत्कृष्ट। अतः उक्त कथन सत्य है कि धर्म,अधर्म एवं काल में अवगाहनत्व शक्ति नहीं होती। आकाश में तो पूर्णता और सब द़़व्यों के लिए होती हैं,पर जीव,पुदगल में यह शक्ति होती हैं।
इसी प्रकार शुद्व पुदगल किसी को बाधित नहीं करता । जीव शुद्व होकर सिद्ध अवस्था में बाधा रहित हो जाता है।
सिद्ध अवस्था में “अवगाहनत्व” samajh mein aata hai kyunki ek siddh mein anant siddh samaahit ho jaate hain, magar kya yeh shakti शुद्ध पुदगल(परमाणु) mein bhi hoti hai?
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अवगाहन का मतलब है कि वह जीवों के शरीर की ऊंचाई,लम्बाई आदि । आत्म प़देश में व्याप्त करके रहना अवगाहन है। यह भी दो प्रकार के होते हैं जघन्य और उत्कृष्ट। अतः उक्त कथन सत्य है कि धर्म,अधर्म एवं काल में अवगाहनत्व शक्ति नहीं होती। आकाश में तो पूर्णता और सब द़़व्यों के लिए होती हैं,पर जीव,पुदगल में यह शक्ति होती हैं।
इसी प्रकार शुद्व पुदगल किसी को बाधित नहीं करता । जीव शुद्व होकर सिद्ध अवस्था में बाधा रहित हो जाता है।
सिद्ध अवस्था में “अवगाहनत्व” samajh mein aata hai kyunki ek siddh mein anant siddh samaahit ho jaate hain, magar kya yeh shakti शुद्ध पुदगल(परमाणु) mein bhi hoti hai?
परमाणु में सूक्ष्म की अपेक्षा अवगाहनत्व घटित होता है ।
Okay.