आकांक्षा
अकबर ने तानसेन से पूछा – तुम्हारे गुरू कौन हैं ? मैं उन्हें सुनना चाहता हूँ ।
तानसेन अकबर को ले कर गुरू रामदास की झोंपड़ी के बाहर रात को छुप गये,
पूरी रात इंतज़ार करने के बाद, सुबह गुरू ने आलाप लिया और वह घण्टों चलता रहा ।
अकबर मंत्रमुग्ध हो गये और महल में आ कर तानसेन से पूछा – ये तुमसे भी इतना अधिक सुंदर कैसे गा पाते हैं ?
तानसेन – जब मैं आलाप लेता हूँ तो मेरी दृष्टि आपकी उंगलियों और गले के हार की ओर रहती है कि आज इनाम में क्या मिलेगा ।
मेरे गुरू किसी आकांक्षा/इनाम की उम्मीद में आलाप नहीं लेते, उनके मन में तो जब भगवान का आनंद भर जाता है,
तब वह आनंद संगीत के रूप में बाहर निकलने लगता है ।