इंद्रियातीत, अमूर्तिक आत्मा ही नहीं, आत्मा के गुण भी होते हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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आत्मा—जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों को वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है। आत्मा की तीन अवस्थाएं हैं,बहिराआत्मा,अंतराआत्मा और परमात्मा।
अतः यह कथन सत्य है कि आत्मा का स्वरुप इंन्दियातीय,अमूर्तिक आत्मा ही नहीं बल्कि आत्मा के गुण भी ऐसे ही होते हैं।
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आत्मा—जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों को वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है। आत्मा की तीन अवस्थाएं हैं,बहिराआत्मा,अंतराआत्मा और परमात्मा।
अतः यह कथन सत्य है कि आत्मा का स्वरुप इंन्दियातीय,अमूर्तिक आत्मा ही नहीं बल्कि आत्मा के गुण भी ऐसे ही होते हैं।
The word is “इंद्रियातीय” or “Indriyateet”?
सही पकड़े,
corrected.
आशीर्वाद
Thanks Uncle.